जब बरसो की पीड़ा ,मन की घुटन ,बचपन की शरारत ,भूख , मजबूरी के तमाशे, दबी हुई सिसकियां ,ठहरे हुए अश्क, कुछ पहेलियां ,कुछ सहेलियां ,कुछ कुछ छूटे हुए साथी, वह किताबें ,वह पाठशाला ,वह कॉलेज ,वह गपशप , बेबसी ,बदहाली बेरोजगारी बेचारापन, कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें ,कुछ ठहरे हुए पल, कुछ रूठे हुए सपने ,रूहे दरवाजे पर दस्तक देते हैं ,ना जाने कब ? कलम उठ जाती है और भर डालती है पन्ने पर पन्ने ,पन्ने पर पन्ने ,कितने ही कविताएं बन जाती हैं ,जज्बात को अल्फाजों में पिरो ,कभी ग़ज़ल, कभी गीत ,कभी कव्वाली ,कभी सूफी ,कभी शेर ,कभी व्यंग्य ,ना जाने कब किताब बन जाती है ! यह लिखने वाले को भी नहीं पता चलता, अगर इसी का नाम कविता है तो हां मैं कविता लिखती हूं, लिखती रहूंगी ::;;;;???+×!

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