
सास भी कभी बहू ही थी
कल की बहू ,आज सासु रानी
घर घर की है यही कहानी
यह रीत तो सदियों पुरानी
करवा चौथ देखो दोनो मनाती
मेंहदी रचाती, चूड़ी खनकाती
सुहाग के गीत गाती
तारो की घनी छाँव मे
दोनों ने बड़े ही चाव मे
खाई करवे का गरी सरगी
शाम सुनाई सासु ने करवे की कहानी
बायने की थाली सजा के लाई बहूरानी
पाँव छूकर बायना देवे बहूरानी
गले लगाके बड़े आस से
बहू से यह कहा ,सास ने:
( मेरे लाल की तू लालिमा
मेरे चाँद की तू है चांदनी
उसकी मल्लिका, उसकी रानी
बायने मे चाहिए केवल ,बिटिया रानी!
बस ढाई अक्षर प्रेम के ,गृहलक्ष्मी !तू सुहानी !
ढाई अक्षर प्रेम के
ढाई अक्षर प्रेम के
काफी है ,काफी है
जिंदगी प्यार की
मुस्कान व दुलार की
काफी है, काफी है
क्योंकि (प्यार ) होता है जंहा
( मिठास )आ जाती है वंहा
प्यार ही काफी है ,काफी है।